भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल साफ़ नहीं है मैं इबादत न करूँगा / ओम प्रकाश नदीम
Kavita Kosh से
दिल साफ़ नहीं है मैं इबादत न करूँगा ।
धोका दूँ ख़ुदा को ये जसारत<ref>दुस्साहस</ref> न करूँगा ।
तूफाँ की क़यादत<ref>नेतृत्व</ref> करूँ कश्ती भी बचाऊँ,
ये मुझसे न होगा मैं सियासत न करूँगा ।
चाहे मेरी आवाज़ का कुछ भी न असर हो,
चुप रह के सितमगर की हिमायत न करूँगा ।
तुम अपनी रिवायात न तब्दील करोगे,
मैं अपने उसूलों से बग़ावत न करूँगा ।
ऐ इत्र के ताजिर ! तेरे बिज़नेस के लिए मैं,
गुलशन के गुलाबों की तिजारत<ref>व्यापार</ref> न करूँगा ।
शब्दार्थ
<references/>