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दिल साफ हुआ आईना-ए-रू नज़र आया / वज़ीर अली 'सबा' लखनवी

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दिल साफ हुआ आईना-ए-रू नज़र आया
सब कुछ नज़र आया जो हमें तू नज़र आया

हूरों की तरफ़ लाख हो ज़ाहिद की तवज्जोह
खुल जाएँगी आँखें जो कभी तू नज़र आया

बे-ताबी-ए-दिल ने बग़ल-ए-गोर झुकाई
आराम न हरग़िज किसी पहलू नज़र आया

मै-कश मुझ साक़ी के नज़ारे ने बनाया
बिजली सी कमर अब्र सा गेसू नज़र आया

जो बात है हर मज़हब ओ मिल्लत से जुदा है
देखा तो ‘सबा’ सब से अलग तू नज़र आया