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दिल से ताअत तेरी नहीं होती / 'जिगर' बरेलवी

दिल से ताअत तेरी नहीं होती
हम से अब बंदगी नहीं होती

ज़ब्त-ए-ग़म भी मुहाल है हम से
और फ़रियाद भी नहीं होती

रास आती नहीं कोई तदबीर
यास-ए-जावेद भी नहीं होती

दी न जब तक हवा एक शोला-ए-इश्‍क़
ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं होती

अल-हज्र तिश्‍नगी-ए-इश्‍क़ ‘जिगर’
हाए तस्कीन ही नहीं होती