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दिल से दिल का इशारा हुआ / कविता विकास
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दिल से दिल का इशारा हुआ
ख़ूबसूरत नज़ारा हुआ
जब तलक दूर था, था, मगर
अब वह आँखों का तारा हुआ
देह माटी की मूरत लगी
मौत का जब इशारा हुआ
तेरी यादें ही सहलाती हैं
हिज़्र का जब भी मारा हुआ
जमती है अपनी दरियादिली
इसलिए सबका यारा हुआ
सारे जग से रहा जीतता
तुमसे ही पर हूँ हारा हुआ
माँ की बातों का पालन किया
ऐसे ही थोड़ी प्यारा हुआ
मान–सम्मान देता हो जो
बस वही बच्चा न्यारा हुआ