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दिल हमारा तो कहीं खोया नहीं था / अमित शर्मा 'मीत'

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दिल हमारा तो कहीं खोया नहीं था
हाँ! तुम्हारे पास बस ढूँढा नहीं था

उससे केवल दोस्ती चाही थी हमने
इश्क़ कर बैठेंगे ये सोचा नहीं था

उसकी नर्माहट अभी तक है लबों पर
वो महज़ इक आम सा बोसा नहीं था

एक लड़की दिल लगाये तबसे बैठी
इश्क़ करना जब मुझे आता नहीं था

अब कभी मिलना नहीं होगा हमारा
ख़त में ऐसा तो कहीं लिक्खा नहीं था

दर्द तन्हाई तड़प आँसू वग़ैरा
यार तेरे इश्क़ में क्या क्या नहीं था

आख़िरश दिल चल पड़ा उसकी ही जानिब
और कुछ इसके सिवा चारा नहीं था

तुम यक़ीं मानो, तुम्हारा ही असर है
वरना ये पत्थर कभी धड़का नहीं था

बिन तुम्हारे नाम हम लिखते भी कैसे
सो ग़ज़ल में जान कर मक़्ता नहीं था