भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल ही तो है / आरसी प्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल हमारा लापता है शाम से
कर रहा है क्या ? गया किस काम से

दर्द ले कर दिल हमारा ले लिया
हो गए दोनों बड़े अंजाम से

लाश में ही जान अब तो डालिए
एक भी बाक़ी न क़त्लेआम से

आप हों चाहे न जितनी दूर क्यों ?
जी रहे हम आपके ही नाम से

ज़िंदगी गुज़री मुसीबत से भरी
मर गए हम तो बहुत आराम से