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दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न / वली दक्कनी
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दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
देख कर हुस्न-ए-बेहिजाब-ए-सुख़न
ब़ज्म-ए-मा'नी में सर ख़ुशी है उसे
जिसकूँ है नश्शा-ए-शराब-ए-सुखन
राह-ए-मज़्मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
ताक़यामत खुला है बाब-ए-सुख़न
जल्वा पीरा हो शाहिद-ए-मा'नी
जब ज़बाँ सूँ उठा निक़ाब-ए-सुख़न
है तिरी बात ऐ नज़ाकत-ए-फ़हम
लौहे-दीबाचा-ए-किताब-ए-सुख़न
है सुख़न जग मिनीं अदीमुलमिस्ल
जुज़ सुख़न नईं दुजा जवाब-ए-सुख़न
लफ़्ज़-ए-रंगीं है मत्लए-रंगीं
नूर-ए-मा'नी है आफ़ताब-ए-सुख़न
शे'र फ़हमी की देख कर गर्मी
दिल हुआ है मिरा कबाब-ए-सुख़न
उर्फी़-ओ-अनवरी-ओ-ख़ाक़ानी
मुझको देते हैं सब हिसाब-ए-सुख़न
ऐ 'वली' दर्द-ए-सर कभू न रहे
गर मिले संदल-ओ-गुलाब-ए-सुख़न