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दिल है जैसे काँच की चूड़ी / परमानन्द शर्मा 'शरर'

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दिल है जैसे काँच की चूड़ी
साबत-साबत टूटी-टूटी

अरमानों की बस्ती वीराँ
उजड़ी-उजड़ी लूटी-लूटी

उखड़ा-उखड़ा रंग-ए-गुलिस्ताँ
डाली-डाली खूँटी-खूँटी

पत्ता-पत्ता घास का परचम
मुहर-ब-लब है बूटी-बूटी

इस दुनिया की हर सच्चाई
लगती है क्यों झूटी-झूटी

आस है इक मिट्टी की गुड़िया
अब भी टूटी -टूटी -टूटी

चारासाज़ो ! वक़्ते सफ़र है
अब तो नब्ज़ भी छूटी-छूटी

‘शरर’ सवेरा होने को है
पूरब में पौ फूटी-फूटी