भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल है जैसे काँच की चूड़ी / परमानन्द शर्मा 'शरर'
Kavita Kosh से
दिल है जैसे काँच की चूड़ी
साबत-साबत टूटी-टूटी
अरमानों की बस्ती वीराँ
उजड़ी-उजड़ी लूटी-लूटी
उखड़ा-उखड़ा रंग-ए-गुलिस्ताँ
डाली-डाली खूँटी-खूँटी
पत्ता-पत्ता घास का परचम
मुहर-ब-लब है बूटी-बूटी
इस दुनिया की हर सच्चाई
लगती है क्यों झूटी-झूटी
आस है इक मिट्टी की गुड़िया
अब भी टूटी -टूटी -टूटी
चारासाज़ो ! वक़्ते सफ़र है
अब तो नब्ज़ भी छूटी-छूटी
‘शरर’ सवेरा होने को है
पूरब में पौ फूटी-फूटी