भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल है तारा, रहे जहाँ, चमके / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल है तारा, रहे जहाँ, चमके।
टूट जाए तो आसमाँ चमके।

है मुहब्बत भी जुगनुओं जैसी,
जैसे-जैसे हो ये जवाँ, चमके।

क्या वो आया मेरे मुहल्ले में,
आजकल क्यूँ मेरा मकाँ चमके।

जब भी उसका ये ज़िक्र करते हैं,
होंठ चमकें, मेरी जुबाँ चमके।

वो थे लब या के शरारे मौला,
छू गए तन जहाँ-जहाँ, चमके।

ख़्वाब ने दूर से उसे देखा,
रात भर मेरे जिस्म-ओ-जाँ चमके।

ज्यों ही चर्चा शुरू हुई उसकी,
बेनिशाँ थी जो दास्ताँ, चमके।

एक बिजली थी, मुझको झुलसाकर,
कौन जाने वो अब कहाँ चमके।