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दिवलो ! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
पड़ती
सिंइया
आंजतां ही
दिवलै री आंख में
चिणगारी
पसरग्यो चौफेर
उजास
हुग्यो उदास
सूरज नै गिट’र
निसंक हुयोड़ो
अन्धेरो
भरीजग्यो
बापड़ै रै
नखत आंसुआं स्यूं
सगळो अकास !