भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिवाली-दिवाली / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नमस्ते ! नमस्ते !
लो, फिर आ गई मैं,
पटाखे चलाती,
दिये जगमगाती,
दिवाली ! दिवाली !

पता है, पता है,
मुझे सब पता है ।
छुपा कर कहाँ किसने,
क्या-क्या रखा है ।
लड़ी छिटपिटी की,
अनारों के डिब्बे ।
बम, वाण,
वो फुलझड़ी फूल वाली ।

चलाना, चलाना जी,
सब कुछ चलाना ।
ये त्योहार ही है ख़ुशी का,
मनाना ।
मगर आग के पास,
ज़्यादा न जाना ।
ज़रा दूसरों को भी,
देखो, बचाना ।
कहीं ऐसा न हो कि,
छोटी-सी ग़लती से,
दुनिया उजाले की,
हो जाए काली ।