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दिवाली की शुभकामनायें / हरजीत सिंह 'तुकतुक'

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विश नहीं कर पाए थे, दशहरे का पर्व पावन |
क्योंकि हमें बस में, मिल गया था साक्षात रावण |

हमने कहा
रावण जी, मन में इक शंका है |
आप का निवास स्थान तो श्रीलंका है |

वह बोला बेटा,
पेपर नहीं पढ़ते, या उड़ा रहे हो खिल्ली |
मैं तो कब का, शिफ्ट हो गया दिल्ली |

हमने कहा,
रावण जी ! यहाँ कैसे पड़े आपके चरण |
बोले बेटा करने आया था एक छोटा सा हरण |

हमने कहा पापी रावण,
सीता की ओर आँख उठा कर भी देखा तो रण होगा |

रावण बोला,
इस बार सीता का नहीं तेरा हरण होगा |

हमने कहा रावण जी,
क्यों बिना बात के हो रहे हो बेबाक |
हमने कब काटी आपकी बहन की नाक |

रावण बोला,
गए साल ऐसी इक बस थी,
उस बस में, बैठी बेबस थी |
छिन्न भिन्न उसको कर डाला,
टूट गयी सांसों की माला |

अपराधी को पड़ा न कोड़ा,
Juvenile कह कर के छोड़ा |
मूक बने तुम रहे थे ताक,
तब कटी थी, मेरी बहन की नाक |

यहीं पे हमारा सपना, गया था टूट।
लॉजिक नहीं था, पर शॉक लगा अटूट।
सोचा, इस जज़्बात को ताक़त बनाते है।
जो नहीं समझे हैं, उनको समझाते हैं।

इस दीवाली, केवल दिये मत जलायें।
साथ साथ में उसके, आवाज़ भी उठायें।
और अपने देश को बेटियों के लिए,
थोड़ा सा और, सुरक्षित बनायें।