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दिवाली / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

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डुबथैं सूरज दीप जलाबांॅ
दरबज्जा कॅ खूब सजाबांॅ
हुक्का पाती, बनै सनाठी
राकेट बम लॅ बारोॅ काठी।

खेल खेलौना रहतै याद
हथिया-घोड़बा के परसाद।
जगमग सबके लागै पक्का
फुटै पड़ाकी लागै धक्का।

अगला साल घुरी के आबांॅ
दरबज्जा के खूब सजाबांॅ।