भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिवाली / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
डुबथैं सूरज दीप जलाबांॅ
दरबज्जा कॅ खूब सजाबांॅ
हुक्का पाती, बनै सनाठी
राकेट बम लॅ बारोॅ काठी।
खेल खेलौना रहतै याद
हथिया-घोड़बा के परसाद।
जगमग सबके लागै पक्का
फुटै पड़ाकी लागै धक्का।
अगला साल घुरी के आबांॅ
दरबज्जा के खूब सजाबांॅ।