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दिवा-रात्रि वर्णन / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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प्रभात - जननी रजनी कोर बसि, दिवस पिताक दुलार
पाबि, गाबि खग कल मुखर, उदित प्रभात कुमार।।1।।
प्रतिभा प्रीाा पसारि ई, जगमग जग कय देल
नैश तिमिर तति हति उदित, दिनपति संगति भेल।।2।।
उषा - उषा कुमरि प्राची वनकनखत सुमन चुनि लेल
तरुन अरुन केर कर पकड़ि परिणीता बनि गेल।।3।।
दिन - दिवा युवा दीपित विभा तप आतप कर योग
विधि नियोग वश हत बिवश निशा अन्त संयोग।।4।।
कनक कोष दिनपतिक लय बनल धनी दिन दीन
किन्तु संपतिक गर्मिएँ अंत मलिन तम लीन।।5।।
सन्ध्या - घन अरुना रसना, नखत मुण्ड माल उर माझ
नभ-वसना शशि-शेखरा काली श्यामा साँझ।।6।।
वयस संधि संध्याक कत नवल इन्दु रुचि भास
नखत हार हीरक पहिरि, राति यमुन तट रास।।7।।
दीप वेला - कारिख कुन्तल, मुख शिखा, स्नेह सदन घर माझ
शीशक - वसना दीपिका बैसलि भरली साँझ।।8।।
रजनी - नित रजनी सजनी बितत नखत कुसुम सजि सेज
उत्कंठित चित सगुनि दिन-पति नहि तदपि अङेज।।9।।
गगन - कुन्तला, तारके हार, मुखक छवि जान
नूपुर झिंगुर, यामिनी-कामिनि रसक निधान।।10।।
नखतक अगनित मनि रतन हार नवगह धारि
माथ चन्द्रिका पहिरि कत चललि निशा अभिसारि।।11।।
अंधकार - दृग मूनल, पथ भ्रष्ट कय नष्ट तेज कय क्रुद्ध
सूझय नहि बूझय न किछु तिमिर सघन पथ रुद्ध।।12।।
तिमिर निबिड तम मोहमय असत जगत जत तत्त्व
लुप्त चेतना सुप्त मति गतिहु न ककरहु सत्त्व।।13।।
अन्हरिया - कारी तन, साड़ी अमा, बिथुड़ल नभ घन केश
उडु हाड़ी गर, अन्हरिया धिनबय निशि दिश-देश।।14।।
तिमिर - चानक चानी दिनपतिक किरन कनक कय चोरि
तिमिर चोर दिस-दिस घुमय घर-घर जुमय अँगोरि।।15।।
दिवसपतिक कन-कन किरन कनक लुटल जुटि आबि
चानक चानी छिनि तिमिर निशिक गर्त देल गाड़ि।।16।।
राका-रजनी - जा धरि शैशव शिशु कला टिम-टिम तारा पाँति
पूर्णिमाक छविसँ छपित भेल मलिन मुख काँति।।17।।
इजोरिया - गोरि नारि सुख चान छवि, नभ आङन बिच आइ
पहिरि आभरन नखत कत सजलि इजोरिया दाइ।।18।।
पूर्णिमा - किरनफेन, साबुन ससी घसि-घसि ओस भिजाय
पूनो धोबिनि दिशा-पट दप-दप देल सजाय।।19।।
पूर्णिमाक प्रात - कनक गोल ई पूब कर, पश्चिम चानिक चाक
केहन पूर्णिमा प्रात ई, पाओल सुकृति विपाक।।20।।