भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिवा स्वप्न / सौरभ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ रही है
हाँ-हाँ वह सचमुच आ रही है
बहुत हौले से दबे पाँव आ रही है
इसके आते ही भीखू की बढ़ेगी पगार
रोते बच्चों को दूध मिलेगा
होती आर्थिक एवं सामाजिक समानता
वह आएगी मेहमान बन
दिलों पे बस जाएगी
वह चीख-चीख कह रहा था
क्रांति आएगी
आज उसने फिर
ज़्यादा ही चढ़ा ली थी।