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दिवा / नरेन्द्र कठैत
Kavita Kosh से
हमुन तेल देखी / अर तेलै धार
गंगा मिली त गंगा
अर जमुना मिली त
जमुना दास
रुंवा बिचारु
सदानि कमजोर रांद
तेल वे / जनै चांदू
वू वेकि करवट मा ऐ जांद
पर तेल / रुंवा तैं
पैली फुकणा चक्कर मा
अफु बि
साबुत निम्ड़ जांद
अर दिवा! / वा चीज च
जैकु कुछ नि जांद
वू रुंवा अर तेलै
मवासि फूकी अपड़ नौ चमकांद
पर सबसि बड़ी
बक्किबात त या च
कि देबी- द्यब्तौं का
नजीक बि/ दिवै बैठ्यूं रांद।