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दिशा / माया मृग
Kavita Kosh से
दौड़ना है।
दौड़ना जरूरी ही नहीं
नियति भी
है हमारी,
लेकिन रूको !
सोचो
आज तक दौड़े,
क्या मिला ?
मैं सोचता हूँ
हम दौड़ें
फिर से तेज
दौड़ें
पर दिशा बदल लें !