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दिसम्बर / विजय गौड़

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जब तक मौसम नहीं हुआ ठंडा
हवा, हवा की तरह रही
बर्फ़ नहीं हुई!
बर्फ़ के गोलें फेंकने से
महरूम रह गए वे,
अपनी खिलंदड़ हँसी के साथ
नहीं हो पाई क़ैद
प्रेमिकाएँ उनकी बाँहों में
 
भुट्टा भूनता बच्चा
आँखों में
सिर्फ़ धुआँ इकट्ठा करता रहा
 
मसूरी में पहुँची हुई गाड़ियाँ
नैनीताल की ओर बढ़ ली
झील की ख़ामोशी से डर कर
शिमला, कुल्लू, मनाली को
दौड़ पड़े सैलानी
 
गधों के झुण्ड के झुण्ड
मनाली बस स्टैण्ड से लेकर
हिडम्बा की ओर जाती
सड़कों पर विचरते रहे
 
रोहतांग की ऊँचाई पर भी
बर्फ़ नहीं है
मड़ई में भी
 
भुट्टे बेचने वाला लड़का
सिर्फ़ इंतज़ार करता रहा
भुट्टों को सेंकने का