भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीठ वाळो / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जिको आभै पार देखै
आविणयै नैं
समै रथी रै रथां री धूळ रा बादळ
जिको साफ देख सकै
अर बता सकै सैनाणी
कै ऐ बादळ
गरजणिया है का बरसणिया
पण आवणियै री उडीक राखै,
कीं कर नीं पावै,
ना कीं करणौ चावै,
कैवै है
तुर्रा-किलंगी तो
आवणियै माथै लागसी।