भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीदी! जल्दी भागो मत / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझसे चला न जाता है,
रस्ता बढ़ता जाता है,
तेज-तेज तुम चलती हो,
मुड़कर भी न तकती हो,
दिल्ली! जल्दी भागो मत

तपती धूप सुनो दीदी!
हाथ जरा पकड़ो दीदी!
ऐसी भी क्या जलदी है,
तुमने तो हद कर दी है।
दिल्ली! जल्दी भागो मत

थककर हूँ मैं चूर अभी,
घर है कितना दूर अभी,
जल्दी से रिक्शा कर लो,
या फिर गोदी में भर लो।
दिल्ली! जल्दी भागो मत।