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दीदी / बोधिसत्व
Kavita Kosh से
दीदी बनारस में रहती है
पहले किसी पिंजरे में रहती थी,
उसके पहले किसी घोंसले में, रहती थी
उड़ती थी
ख़ूब ऊपर और दूर-दूर ।
उसके भी पहले छिपी थी धरती में ।
उसे किस बात का दुख है
एक बेटी है
एक बेटा,
पति कितना चहकता हुआ
घर कितना भरा हुआ, खिला हुआ
उसे कमी क्या है ?
घर में रहकर ही पढ़ लिया
पहले बी०ए०, फिर एम० ए०
फिर पीएच०डी० । और क्या चाहिए ।
एक स्त्री को दुनिया में और क्या चाहिए ।
जो चाहती है, खाती है
मनचाहा पहनती है,
किसी को देती है क़िताबें,
किसी को पैसे, किसी को कपड़े
किसी को शाप, किसी को आशीष
इतना सब होते हुए उसे किस बात का है दुख
क्यों हरदम मगन रहने वाली दीदी का
उतरा रहता है मुँह ।