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दीना मास्टर / कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह

वैसे तो कुछ नहीं होता
एक आदमी का मार दिया जाना
सत्तर करोड़ की आबादी वाले देश में।
मगर कायदे से सोचिए
तो बात बहुत बड़ी हो जाती है।

यहाँ बड़ा हूँ - ये जमीन मेरी है,
पैदा भी यहीं पर हुआ हूँ,
और कहाँ जाऊँगा –
कहते थे मास्टर।
और दीना मास्टर यहीं पर सुला दिए गए।

फिर, कुछ नहीं हुआ ।

मास्टर की देखा देखी
और लोग भी इसी तरह
दुनिया को बदलने की कोशिश में
दुनिया से विदा हुए ।
कोई कायदे की बात नहीं उठी,
बात आयी गयी खत्म हुई ।

दीना मास्टर एक नहीं, कई हैं –
कई हैं इसी तरह अपनी जमीन की हिफाज़त में
ज़मीन के अन्दर हुए ।
सबका सवाल मगर एक
एक है जवाब –
दीना मास्टर
बार-बार ज़मीन से पैदा हो रहे हैं।

७ अक्तूबर '८६