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दीनों के मसीहा / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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जन-जन के उद्धारक बापू, दलितोॅ के उद्धारक,
हिन्दू जाति के पाखण्डोॅ के, पापोॅ केरोॅ तारक ।

हे भारत के बापू, गाँधी, करुणा के अवतार,
युग-युग सेॅ पीड़ित दलितोॅ लेॅ एक नया संसार ।

पराधीनता के दुख जत्तेॅ, तेॅ, अछूत के दुख भी
जेकरोॅ लेॅ जिनगी मेॅ काहूँ, थोड़े टा नै सुख भी ।

अंधकार में जीयै लेली, युग-युग सेॅ लाचार,
भेदभाव के सदियो सेॅ जे चलै उठैलेॅ भार ।

जे मन केॅ कभियो नसीब नै देवालय के द्वारो,
उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम वाम काल रं चारो ।

सचमुच मेॅ ही दलित लोग सब जीवियो केॅ नै जीत्तोॅ,
ई सब देखी केॅ बापू के मोॅन बड़ा कलपित्तोॅ ।

प्रान्त-प्रान्त मेॅ पहुँची बापू, भाग्य दलित के जोड़ेॅ लागलै,
की अछूत, की भंगी जन ही, वर्ण-भेद केॅ तोड़ेॅ लागलै ।

जे अछूत, ऊ ईश्वर के जन, ईश्वर-अंश कहावेॅ लागलै,
हरिजन केरोॅ तेज उजागर, जन-मन-भेद ढहावेॅ लागलै ।

गूंजी उठलै बापू के सुर, गूंजेॅ लगलै भारत भर,
जे अछूत सेॅ घृणा करै छै, ऊ नर तेॅ निश्चय पामर ।

ऊ हिन्दू नै, धर्म नै बूझै, जे पाखण्डे मेॅ छै लीन,
यहा धर्म हिन्दू जों छेकै तेॅ हिन्दू होय्यो केॅ दीन ।

शर्म लगै छै हिन्दू होय मेॅ, यहा धर्म जों हिन्दू के छै,
वर्ण-भेद के अर्थ नै बूझै, नै अपने मन सेॅ ही पूछै ।

जे परहेज करै छै यै लेॅ, मैलयुक्त केकरो काया,
तेॅ कैन्हेंनी वैं बूझै छै, धर्म वहाँ नै, छै माया ।

तन के मैल धुलावै जल्दी, मन के मैल तेॅ मुश्किल सेॅ,
हिन्दू वही कहावेॅ पारेॅ जे मैल निकालेॅ ई दिल सेॅ

पाखण्डी ही तेॅ अछूत छै, जेकरोॅ मन मैलोॅ छै कारोॅ
जे समाज केॅ स्वच्छ करै छै, ऊ अछूत की ? कहोॅ विचारोॅ ।

घूमी-घूमी केॅ गांधी जी, यहाँ कहै सब्भे सेॅ बात,
हमरोॅ जन्म यही लेॅ होलै, की समाज काटौ लै जात !

हम्मेॅ चिन्तित रहै छी जेना गो रक्षा लेॅ भोरे-साँझ,
वै सेॅ कम हरिजन लेॅ कटियो ? हमरोॅ बुद्वि नै छै बाँझ।

हरिजन के मुक्ति में जेना बापुओ रोॅ मुक्ति छेलै
आश्रम मेॅ नै भेद जरो टा, हेने ही अनुरक्ति छेलै ।

बापू बोलै; जे अलभ्य छै हरिजन लेॅ, ऊ हमरौ लेॅ भी
भाग्य दलित के जों नै जागेॅ तेॅ भविष्य की, भारत भावी ?

जों अछूत के भाव ढहेॅ नै हमरोॅ जीतेॅ जी ई पाप,
तेॅ अछूत अगला जीवन मेॅ बनौं छोड़ी केॅ सब्भे छाप ।

बापू तोरोॅ कथन देश लेॅ नया धर्म रं उतरी ऐलै
जर्जर माँटी के काया में नया वेग सेॅ प्राण समैलै ।