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दीन करती गर्दिशी बातें / प्रेमलता त्रिपाठी
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दीन करती गर्दिशी बातें सुनाने आ गये ।
दो महकने आज मुझको क्यों रुलाने आ गये ।
बीत जाने दो पलों को थे कभी अपने नहीं ।
खोल दो अब खिड़कियों को दिन सुहाने आ गये।
राज जीवन में कभी कुछ भी नहीं था जानिए
खुल गये कोरक नयन सपने सताने आ गये ।
लेखनी शृंगार करती काव्य धारा में नहा,
पंख लगते अक्षरों को गुनगुनाने आ गये ।
तुम न आये फिर वही आँसू भरे ये दीन मन ।
हिचकियाँ बनकर मुझे फिर यूँ सताने आ गये ।
कामनाएँ जागती जो स्वप्न दीर्घा में सदा,
प्रेम की दुनिया अलग हम बसाने आ गये ।