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दीपक जलता रहा अकेला / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
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दीपक जलता रहा अकेला॥
झिलमिल करती दीपावलि की
फीकी पड़ी चमक है फिर भी ,
रखा हुआ जो चौबारे पर
मिट्टी का तन बना उपेक्षित।
दीपक जलता रहा अकेला॥
पल भर की बस चकाचौंध की
कुछ क्षण अग्नि सुमन का रेला।
चार घड़ी तक मोमबत्तियों
ने प्रकाश का किया झमेला।
दीपक जलता रहा अकेला॥
जिसे न देखा पलट किसी ने
भूल गयी गृहणी प्रकाश दे ,
अंतर में भर स्नेह - सुधा वह
करता रहा किरण का मेला।
दीपक जलता रहा अकेला॥