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दीपक बनकर तमस हटायें / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सुस्ती दूर भगाएँ बहना,
झटपट आलस त्यागें।
दीपक बाती से बोला है,
आज रात भर जागें।
तेल सखा से भी वह बोला,
साथ-साथ चलना है।
बाती के संग सखे रात भर,
तिल-तिल कर जलना है।
बाती बोली काम हमारा
उजियारा फैलाना।
दुनियाँ की खुशियों की खातिर,
ख़ुद जलकर मिट जाना।
भले लोग औरों की करते,
रहते सदा भलाई।
सादियों से ही रीत यही है,
जग में चलती आई।
पेड़ नदी सागर झरने नग,
बस देते ही जाते।
अपने ख़ुद के लिए किसी से
कुछ भी नहीं मंगाते।
बिना किसी भी स्वार्थ भाव के,
हम भी जलते जाएँ।
दीपक बनकर सारे जग से
हम सब तमस हटायें।