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दीपक में जब तेल नहीं तो / गिरधारी सिंह गहलोत

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दीपक में जब तेल नहीं तो
कैसे दीप जलाऊँ मैं
     
दहशतगर्दी की चोटों से
सारा जग ही आहत है
लाख उपाय किये हैं लेकिन
अब भी कुछ न राहत है
सेना पर सब कुछ छोड़ा है
विभीषणों पर नज़र नहीं
बाहर वालों से भिड़ लेंगे
जयचंदों की खबर नहीं
मानवता खतरे में हो तो
चुप कैसे रह जाऊँ मैं
    
दीपक में जब तेल नहीं तो
कैसे दीप जलाऊँ मैं
     
अभी भरोसा मुझको लेकिन
बदलेंगे हालात सभी
आशा का सूरज निकलेगा
तम के बादल छंटे तभी
विश्वासों के चंद्रोदय से
अमा विनाश की होगी दूर
भाईचारा प्रेम जगत में
जन जन को होगा मंजूर
घृणा द्वेष छल कपट दूर हो
तब तक अलख जगाऊँ मैं
    
दीपक में जब तेल नहीं तो
कैसे दीप जलाऊँ मैं