भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीपक राग / बालकृष्ण गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिवाली पर गदहे जी ने
ऐसा गाया ‘दीपक राग’ ;
जले न दीपक, मगर हो गए
श्रोताओं के गरम दिमाग।

देख गरम माहौल, डरे वे,
कहीं हाल में लगे न आग ;
‘झुलस गया है गला, भाइयो!
-कहकर गया मंच से भाग।
         [पराग, नवंबर 1983]