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दीपक / हरीसिंह पाल
Kavita Kosh से
हमारा काम है जलना
चाहे यहाँ जलें, या वहाँ जलें
झोंपड़ी में, महलों या देवस्थान पर।
ये छोटे-मोटे आंधी, तूफान
हमें हिला तो सकते हैं
मगर बुझा नहीं सकते
हम वहीं है, जहाँ पहले कभी थे
राह चलते, बाधा और मुश्किलें
आयीं तो क्या आयीं?
इससे हमारी राहें, क्षणिक ठहरीं जरूर
मगर रुकीं नहीं
यह तो और आगे बढऩे की
अदम्य लालसा बढ़ा गए
हम न झुके कभी, न रुके कभी,
हमारी राह बदली तो
पर चाह नहीं बदली।
वो हम ही थे, जो हम बने रहे
न कभी दीन बने, न कभी हैवान बने।
जीवन में उतार-चढ़ाव आए जरूर
और आगे भी आएंगे
न इनसे हम तब घबराए थे
और न अब घबराएंगे
जिंदगी चुक थोड़े जाती है
मौसमी आँधी-तूफान से।
हम तब भी प्रकाश देते रहे
आगे भी देते रहेंगे।