भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीपावली / कुमार कृष्ण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आग के पर्व पर
जो नहीं करते मिठाई का इन्तजार
वे भी देखते हैं रेशमी रजाई के सपनें
वे भी करते हैं दाल-भात से
लक्ष्मी की पुश्तैनी पूजा
यह दूसरी बात है उनके घर
न कभी लक्ष्मी आती है न रजाई
वे पुआल की टहनियों पर ही उगा लेते हैं-
सपनों के अनगिनत फूल
और करते हैं इन्तजार
अगले आग के उत्सव का।