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दीपों का उत्सव / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
आज दीपों का दिवस है!
बन गए हैं रोशनी की
झील जैसे गाँव
और हर घर लग रहा है
मोतियों की नाव।
कौन सोए आज बस्ती में
पटाखों का दिवस है।
फुलझड़ी के फूल रौशन
कर रहे कोने अंधेरे
नहाए हैं रोशनी में
आज चिड़ियों के बसेरे।
रस भरे पकवान खाने का
खिलाने का दिवस है।