भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीपों का उत्सव / सुरेश विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज दीपों का दिवस है!

बन गए हैं रोशनी की
झील जैसे गाँव
और हर घर लग रहा है
मोतियों की नाव।

कौन सोए आज बस्ती में
पटाखों का दिवस है।

फुलझड़ी के फूल रौशन
कर रहे कोने अंधेरे
नहाए हैं रोशनी में
आज चिड़ियों के बसेरे।

रस भरे पकवान खाने का
खिलाने का दिवस है।