दीप आओ हम जला लें / जनार्दन राय
दीप आओ हम जला लें,
किन्तु इसके साथ ही-
मन की मलिनता भी मिटा लें,
दीप आओ हम जला लें।
छा रहा जग में अन्धेरा,
दूर है सुख का सवेरा।
तिमिर का सर्वत्र डेरा,
कब मिलेगा निज बसेरा।
मोह का पर्दा हटा लें,
दीप आओ हम जला लें।
हैं भटकते हम जहाँ में,
खोजते तकदीर अपनी।
रो रहे हैं हम जहाँ में,
बजाते जंजीर अपनी।
शक्ति को अपनी बढ़ा लें,
दीप आओ हम जला लें।
भूख की ज्वाला जली है,
प्यास की चिन्ता पली है।
काल ही सबसे बली है,
सूखती दिल की कली है।
भाग्य को अपना बना लें,
दीप आओ हम जला लें।
मनुज ने मनु को सताया,
शक्ति भर उसको जलाया।
खून भी उसका सुखाया,
वज्र भी उस पर चलाया।
उस मनुज को प्यार कर लें
दीप आओ हम जला लें।
दीन हो कब तक रहेंगे,
सुस्त हो कब तक बढ़ोगे।
धैर्य कब तक हम धरेंगे,
निर्बल रह कब तक चलेंगे,
दीप आओ हम जला लें।
दीप की है ज्योति कर में,
कीट-रिपु नैया भँवर में।
पाप की सेना समर में,
बांधती है कफन सर में,
विजय का डंका बजा ले।
दीप आओ हम जला लें।
-दिघवारा,
13.9.1967 ई.