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दीप आशाओं के राहों में जलाना क्या हुआ / रविकांत अनमोल
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दीप आशाओं के राहों में जलाना क्या हुआ
हर घड़ी उनको हमारा याद आना क्या हुआ
एक मुद्दत से ये आँखें रेत जैसी ख़ुश्क हैं
आँसुओं का इस गली में आना जाना क्या हुआ
आज तू मेरे लिए इक ख़ाब जैसा हो गया
मैं तिरे हर ख़ाब में था वो ज़माना क्या हुआ
जब ज़माना हम पे हँसता है तो आता है ख़्याल
देख कर हम को वो उनका मुस्कुराना क्या हुआ