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दीप की लौ से दिन / केदारनाथ अग्रवाल

भूल सकता मैं नहीं

ये कुच-खुले दिन,

ओठ से चूमे गए,

उजले, धुले दिन,

जो तुम्हारे साथ बीते

रस-भरे दिन,

बावरे दिन,

दीप की लौ-से

गरम दिन ।