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दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ।

साधना कि आस्था महान हो ,
अर्चना कि योजना समान हो।
मैं जलूँ अकंप इस निशीथ में ,
धूप का कि चंद्रिका का दान हो।

बूँद बनूँ नेह अश्रु में ढला करूँ।
दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ॥

श्वास संचरण करे समाधि में ,
या कि आह घुटे आधि व्याधि में।
मैं सदा सुरभि सुगंध में बसूँ ,
ज्योति भरूँ व्यक्त की उपाधि में।

साँझ में घनान्धकार में पला करूँ।
दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ॥

बाहुओं में बांध लूँ अकाश को ,
बांध लूँ दिशा धरा के व्यास को।
अंजली भरी किरण किरण बिखेर दूँ
नैन लें निहार आस पास को।

मैं जियूँ मिटूँ पलों के पथ चला करूँ।
दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ॥