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दीमकों का जलूस / अभिमन्यु अनत
Kavita Kosh से
सीने के सामने के कवच को
भीतर से नुकीले दाँत निकल आये हैं
इसीलिए अब ढाल के होते हुए भी
हम निस्सहाय हैं -
बरगद के पेड़ की तरह
ज़मीन को दूर तक
अपने शिकंजों में लिये हुए भी
तूफानों के इस देश में
बरगद का विस्तृत और सम्पन्न वृक्ष
धराशायी हो जाता है
अन्य वृक्षों से पहले ही
सभी सुविधाओं के बावजूद की
लिजलिजेपन की हमारी स्थिति
हमें निहत्थेपन को ढकेले जा रही
और हम
अपने रंग-बिरंगे कपड़ों के भीतर भी
नंगे हैं ।
और
अपनी विस्तृत फैली जड़ों के बावजूद
हम उखड़ते चले जाते रहे हैं
हमारे ऊपर से गुज़र रहा है
दीमकों का लम्बा जलूस !!