दीवानी लड़की का प्रेमगीत / सिल्विया प्लाथ / उज्ज्वल भट्टाचार्य
मैं आँखें बन्द करती हूँ और सारी दुनिया मुर्दा हो जाती है;
पलकें उठाती हूँ तो सब फिर से जी उठते हैं ।
(मुझे लगता है कि मैंने अपने मन में तुम्हें बनाया है ।)
थिरकते हुए निकल पड़े हैं सितारे नीले और लाल रंग में,
एक बेमानी सा अन्धेरा आते हुए फैलता है :
मैं आँखें बन्द करती हूँ और सारी दुनिया मुर्दा हो जाती है ।
मैंने सपना देखा अपने जादू से ले आए तुम मुझे बिस्तर तक
तुम्हारे सुर में मैं घायल, चुम्बनों से पागल ।
(मुझे लगता है कि मैंने अपने मन में तुम्हें बनाया है ।)
आसमान से गिर पड़ता है ईश्वर, नर्क की आग मद्धिम :
निकल आते हैं सेराफ़ीम और शैतान के कारिन्दे :
मैं आँखें बन्द करती हूँ और सारी दुनिया मुर्दा हो जाती है ।
मैंने चाहा था तुम लौट आओगे वादे के मुताबिक,
पर उम्र बढ़ती जाती है और तुम्हारा नाम भूल जाती हूँ ।
(मुझे लगता है कि मैंने अपने मन में तुम्हें बनाया है ।)
काश ! मैंने एक तूफ़ानी परिन्दे से प्यार किया होता;
कम से कम बहार आने पर वे लौट तो आते हैं ।
मैं आँखें बन्द करती हूँ और सारी दुनिया मुर्दा हो जाती है ।
(मुझे लगता है कि मैंने अपने मन में तुम्हें बनाया है ।)
मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य