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दीवारों पर / अनिमेष मुखर्जी
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दीवारों पर
अब वो टेढ़ी लाइनें नहीं दिखतीं
बिस्तर की चादर में
उड़ता सुपरमैन नहीं है
जूते भी करीने से रखे हैं अब
लॉन में गमलों का विकेट नहीं है
पड़ोसन की कोई शिकायत नहीं आती
दादी भी अब सताई नहीं जाती
न रिमोट की अब लड़ाई होती है
न मैथ टेस्ट की कोई कॉपी खोती है
बस
गर्मी की धूप में सूखता अचार नहीं दिखता
और
इतवार की शाम ये घर बात नहीं करता।