भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीवार के उस पार / मृदुला सिंह
Kavita Kosh से
सुना है दीवार के उस पार कहीं
असली भारत रहता है
जो इस ओर परोसे गए
सोने के वर्तनों के भोग का स्वाद
नही जानता
दिन रात पेट की जुगत में लगा
यह भारत मासूम है
नही देखना चाहता था वह
उस तरफ की साहबों की सवारी
पर दीवार ने अपनी गर्दन ऊंची कर
रोक लिया है उन्हें
और चेताया है उनकी हद
आओ! कर दें सुराख इन दीवारों में
कि अब बहुत हुआ खेल रोशनी का
दीवार के उस पार के हिदुस्तान को भी
रोशनी का हक है
दीवारें जड़ें जमाये
इससे पहले
इन्हें ढहा दिया जाना चाहिए