भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीवार से मुख़ातिब / नील कमल
Kavita Kosh से
दीवार पर लिखी
तक़दीर
बदलने की ज़िद
हर सुबह का आग़ाज़
एक हाथ है
जो लिखता है
एक हाथ है
जो लिखे को
चाहता है मिटाना
जैसे आईने पर जमी धूल
रेशमी दुपट्टे से पोंछती
लड़कियाँ
फिर
हाथ है
दीवार से मुख़ातिब
और हसरत है
कि दीवार
हो कोई सुंदर आईना ।