भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीवार / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
लोनी लगी दीवार
थम्बे-थूनियों के सहारे
कब तक टिकी रहेंगी?
कब तक रोक सकेंगे हम
इस भय से
कि हमारा आँगन नंगा हो जायेगा
और सब कुछ सबके सामने आ जायेगा
जब-
एक दिन इस दीवार को
गिरना ही है।
तो-
इसके पहले
कि यह अकस्मात गिरकर
घायल कर जाए हमें
दृढ़ कर मन
एक बार ही गिरा दें
और नयी दीवार के
निर्माण में जुट जाएं।