दीवाली / कैलाश झा ‘किंकर’
हमर दीया हुकहुकी पर, सगरो दीपऽ के माला छै।
सबके घऽर में दीवाली छै, हमरऽ घऽर दीवाला छै॥
हम्मर छोटका छौड़ा ऐलै
दौड़ल-दौड़ल हमरा पास
कपड़ा लत्ता आरो पटाखा
देलियै नै से बड़ा उदास
बिगड़ल छथनी लछमी जी त हमर फकीरी आला छै।
सबके घर में दीवाली छै, हमरऽ घऽर दीवाला छै॥
की कहौं हम घऽर के खिस्सा
विपदा हमरऽ भारी छै
केना करबै घऽर केॅ लछमी
चौखऽ छै नै केवाड़ी छै
एबो करथिन घुरिये जैथिन, हमरा कन नै ताला छै।
सबके घऽर में दीवाली छै, हमरऽ घऽर दीवाला छै॥
देखै छियै हमरऽ सन सन
आरो बहुत सन लोग छै
सभ्भे दिन सँ इहे गरीबी
बड़का भारी रोग छै
ओकरा सुख सँ नीन्द उड़ल छै, हमरा दुख सँ पाला छै।
सबके घर में दीवाली छै, हमरऽ घऽर दीवाला छै॥
हुसलै फेनू इहो दीवाली
लाबो हुक्का-पाती देॅ
संठी सँ उकिऐयै आब
अबकी ई सुकराती केॅ
लछमी जें लेब से लेॅ-लेॅ, हमर दरिद्री केबाला छै।
सबके घर में दीवाली छै, हमरऽ घऽर दीवाला छै॥