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दुःख-मृत्यु में देखूँ मैं नित / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग तोड़ी-ताल कहरवा)

 दुःख-मृत्यु में देखूँ मैं नित बहती सुखद सुधा-धारा।
 अति दारिद्र्‌य-दैन्यमें पाऊँ मैं तव कर-स्पर्श प्यारा॥
 पीड़ा-व्यथा भयानकमें दीखे मुझको तव मंगल-दान।
 रूक्ष-परुष वाणीमें मैं सुन पाऊँ मधु मुरलीकी तान॥