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दुःख दूर मत करो नाथ! / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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दुःख दूर मत करो नाथ! दो शक्ति घोर दुख सहने की।
दुख में किंतु कृपा-सुख अनुभव कर, कृतज हो रहने की॥
सुख मत दो, पर हरण करो हरि! भोग-सुखों की सारी भ्रान्ति।
देख सदा सर्वथा कृपा तव, अनुभव करे चिनित शान्ति॥
दुख में कभी न रोऊँ मैं, सुख में भी कभी नहीं झूलूँ।
दुख-सुख उभय वेषमें लूँ पहचान तुम्हें, न कभी भूलूँ॥
सुखमें कभी न जागे मेरे मनमें किंचित् भी अभिमान।
दुखमें तुमपर कभी न हो संदेह तनिक, मेरे भगवान॥