दुःस्वप्न कथा / राग तेलंग
निर्दोष नागरिकों को आते औरों के मुकाबले ज्यादा डरावने सपने
ऐसे सपने जिन्हें सुबह-सुबह बताते हुए वे कांपा करते
यह मानते हुए कि सुबह-सुबह के स्वप्न सच हो जाते हैं अक्सर
सपने में उन्हें वर्दीधारी दिखते
अपने सबसे स्वाभाविक नकारात्मक रोल में
फिर वे गिरफ्तार किए जाते इसलिए कि उनका कोई दोष नहीं होता था
यह सपना सुननेवाला भी जानता था कि
आज सबसे बड़ा गुनाह है गुनहगारों के बीच बेकसूर होना
मगर जब वह सपना आगे बढ़ता अपनी सबसे भयावह परिणति की ओर
जिसमें वर्दीधारी कहता -बचना है तो तुम्हें इन सफेदपोशों से माफी मांगनी होगी
वह भी चरण छूकर
वरना ठूंस दिए जाओगे सलाखों के पीछे
मरोगे गुमनाम मौत
क्योंकि खुद के साथ-साथ
अन्य निरपराधों के बारे में तुम्हारा सोचना ही कसूरवार साबित होता है हमारी नज़र में
और निर्दोष नागरिक जागते में बताते हुए सपने के बारे में
सिर झुकाकर कहता-फिर मैंने माफी मांग ही ली ]मगर फिर भी कुछ नहीं हुआ
सफेदपोश आगे बढ़ गए यह कहकर कि देखेंगे
एक स्वप्न के बयान में
कई स्वप्नों के ध्वस्त होने की खबर छुपी हुई थी
यह तो एक सपना था दोस्त !
जो गनीमत है सच नहीं हुआ
वरना आजकल लगती है कितनी देर
दुःस्वप्नों के सच हो जाने में ।