दुअरहि चान उगिय गेलै हे ललना / अंगिका लोकगीत
प्रस्तुत गीत में पत्नी द्वारा पति पर लगाये गये अभियोग में भी पति के प्रति प्यार छिपा है और वह अपने ससुर की उदारता तथा अपने प्रति उसके स्नेह की परीक्षा लेना चाहती है।
दुअरहिं चान उगिय गेलै हे ललना।
ओहि तर<ref>उसी के नीचे</ref> दुलहा बाबू, रचलक हे सेजिया॥1॥
खेललि धुपलि गेली, कनियान<ref>कनियाँ दुलहिन</ref> हे सुहबी।
लपकि धैलै<ref>पकड़ा</ref> छैला, दाहिन हे बहियाँ॥2॥
लपकि पकरु छपकि पकरु, दाहिन हे बहियाँ।
हाथ जनु पकरो परभु, संखा चूड़ी हे फूटतेॅ।3॥
फूटी जैतै संखा चूड़ी, मसकी जैतै हे कँगना।
संखा चूड़ी माँगते सुहबी, सोना चूड़ी देबौ॥4॥
कीनि<ref>पकड़ा</ref> के पहिराय देबौ हे कँगनमा।
कीनि के पहिराय देबौ, लगाय देबौ हे मेढ़ना<ref>कील</ref>॥5॥
सभबा बैठल तोहें, ससुरा बढ़ैता<ref>श्रेष्ठ</ref>।
तोरे पूते चोरैलक, हमरो कँगनमा॥6॥
कथि केरो कँगना पुतहू, कथि केरो मेढ़ना।
सोना के कँगना ससुरा, रूपो के हे मेढ़ना॥7॥
हुए दे परात पुतहू, पसरतै हटिया।
कीनि देबौ कँगना, लगाय देबौ हे मेढ़ना॥8॥