भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुआओं की दास्तां / विश्राम राठोड़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

है गरीब तु भी उस मालिक के नीचे अमीरी का नशा न कर
मेरे मालिक ने तेरी भी उम्र लिखी तु भी कभी हंसा लिया कर
ये गरीबों की ज़िन्दगी में नहीं आयेगें शोहरत झमेले
तु तो अमीर है कभी गरीबों की ज़िन्दगी के लिए भी दुआ कर लिया कर
मैं भी तब तक अमीर हुं, जब तक तु गरीबों के लिए दुआ कर
हर दुआ उनके लिए भी अंजुमन होगी
वेश
वाबस्ता का पहन कर तु भी आ जाया कर

फुटपाथ जैसे है उनकी ज़िन्दगी, उन्हे भी कभी याद कर लिया कर
मालिक उनका भी होता है जो महलों में रहते
इन गरीबों के लिए तु बस मसीहा बन जाया कर