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दुआ कर ग़म-ए-दिल, ख़ुदा से दुआ कर / शैलेन्द्र

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दुआ कर ग़म-ए-दिल, ख़ुदा से दुआ कर
वफ़ाओं का मजबूर दामन बिछा कर
दुआ कर ग़म-ए-दिल, ख़ुदा से दुआ कर
जो बिजली चमकती है उनके महल पर
वो कर ले तसल्ली, मेरा घर जला कर
दुआ कर ग़म-ए-दिल...

सलामत रहे तू, मेरी जान जाए
मुझे इस बहाने से ही मौत आए
करूँगी मैं क्या चन्द साँसें बचा कर
दुआ कर ग़म-ए-दिल...

मैं क्या दूँ तुझे मेरा सब लुट चुका है
दुआ के सिवा मेरे पास और क्या है
ग़रीबों का एक आसरा-ए-ख़ुदा है
मगर मेरी तुझसे यही इल्तजा है
न दिल तोड़ना दिल की दुनिया बसा कर
दुआ कर ग़म-ए-दिल...