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दुआ सी लगती मां / रिंकी सिंह 'साहिबा'

पूजा, तीरथ, वंदन, चंदन और दुआ सी लगती मां,
वेद ऋचा सी बातें उसकी, पुण्य कथा सी लगती मां।

अम्बर सा विस्तार है जिसका सागर सी गहराई है,
जिसकी महत्ता से आलोकित सूरज की अरुणाई है,
धरती ,अम्बर ,चंदा ,तारे और हवा सी लगती मां,
पूजा ,तीरथ ,वंदन,चंदन और दुआ सी लगती मां।

मां की लोरी से ही निकली सात सुरों की सरगम है,
मां के प्रेमासिक्त ह्रदय से ही नदियों का उद्गम है,
जीवन के तपते मरुथल में घोर घटा के जैसी मां,
पूजा, तीरथ,वंदन ,चंदन और दुआ सी लगती मां।

सुख ही सुख भरती जीवन में ,स्वयं दुखों को सहती है,
लाख बुरा कहती दुनिया पर मां अच्छा ही कहती है,
दुनिया के सारे ज़ख़्मों पर एक दवा सी लगती मां,
पूजा ,तीरथ ,वंदन ,चंदन और दुआ सी लगती मां।

लाभ - हानि के मापक पर ही भावों के अनुबंध मिले,
मिले मुखौटे रंग विरंगे रिश्तों में पैवंद मिले।
रिश्ते नातों के पलड़े पर करुणा दया सी लगती मां,
पूजा ,तीरथ ,वंदन , चंदन और दुआ सी लगती मां।