दुई की बात जो दिल से निकाल देता है
उसी को वो भी वक़ारो-जलाल देता है
उसे बशर न कहें जो ज़रा-सी बात पे ही
हर एक राज़ सरे-आम उछाल देता है
जो छाँव औरों को दे खुद कड़कती धूप सहे
किसी, किसी को ख़ुदा ये कमाल देता है
उरूज के लिए अपना ज़मीर खो देना
यही अमल तो बशर को ज़वाल देता है
न पास जा तेरी पहचान ही न खो जाये
'दरख़्त धूप को साये में ढाल देता है'
तमीज़ अच्छे-बुरे में न कर सका जो कभी
वही अब अच्छे-बुरे की मिसाल देता है
सुराग़ उजालों का वो पा ही लेता है 'दरवेश'
जो ख़ुद को अन्धी गुफाओं में डाल देता है